BA Semester-1 Manovigyan - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2630
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान के प्रश्नोत्तर

अध्याय - 4

 

ध्यान प्रक्रियायें
(Attention Processes)

 

प्रश्न- चयनात्मक अवधान के किन्ही दो सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-

चयनात्मक अवधान की व्याख्या करने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने कई तरह के सिद्धातों का प्रतिपादन किया है जिनका उल्लेख नीचे दिया जा रहा है.

1. मार्ग विरोधी सिद्धांत - (Bottle neck Theories)

2. नॉरमैन एवं बोक्रो मॉडल - (Norman and Bobrow's Model)

3. नाईसर मॉडल (Neisser Model)

इनमें से दो का वर्णन नीचे दिया जा रहा है.

नॉरमैन एवं बोवरो मॉडल
(Norman and Bobrow's Model)

नॉरमैन तथा बोवरी (1957) ने मार्ग विरोध सम्प्रत्यय को स्वीकार किया तथा कहा कि सचमुच में सूचना संसाधन में मार्ग विरोध नाम की कोई चीज नहीं होती है जिससे कि सूचना प्रवाह में कोई रुकावट होती है। इन लोगों के सिद्धांत या मॉडल के अनुसार अवधान का स्वरूप सीमित होता है क्योंकि व्यक्ति के पास किसी कार्य पर ध्यान देने के लिए मानसिक प्रयास करने की क्षमता सीमित होती है। ऐसे मानसिक प्रयास को नॉरमैन एवं बोवरों ने साधन या युक्ति की संज्ञा दी है। इन लोगों ने साधन में मानसिक प्रयास के अलावा स्मृति के विभिन्न प्रयासों एवं संचार माध्यमों को भी सम्मिलित किया है। इन लोगों का मत है कि चूँकि व्यक्ति के पास जो साधन होता है वह सीमित होता है

फलत: वह कुछ सीमित वस्तुओं या उद्दीपकों या कार्यों पर ही ध्यान दे पाता है। इन लोगों ने यह स्पष्ट किया कि व्यक्ति के ध्यान कई कार्यों में विभाजित होने से निष्पादन में जो भी कमी होती है उसका कारण यह होता है कि उस सीमित साधन का उपयोग व्यक्ति को उन सभी कार्यों में बॉटकर करना होता है।

नॉरमैन तथा बॉवरो ने अपने सिद्धांत में दो तरह के कार्यों के बीच अन्तर किया है - साधन- सीमित कार्य (Resource - Limited Task) तथा ऑकड़े-सीमित कार्य (Data - Limited Task )। साधन सीमित कार्य से तात्पर्य वैसे कार्य से होता है जिसमें निष्पादन साधन के उपलब्ध होने पर निर्भर करता है। यदि ऐसे कार्य के लिए अधिक साधन उपलब्ध होते हैं तो उसका निष्पादन बढ़ जाता है तथा जब कम साधन उपलब्ध होते है तो निष्पादन में कमी आ जाती है। जैसे मान लिया जाये कि कोई व्यक्ति गणित की समस्या का समाधान कर रहा है तथा साथ ही साथ जोर जोर से गाना गा रहा है। ऐसी परिस्थिति में गणित की समस्या का समाधान मद गति से तो होगा ही साथ ही साथ कई तरह की त्रुटियाँ भी होंगी। परन्तु गाना गाना बन्द करके जब व्यक्ति अपना सारा ध्यान गणित की समस्याओं के हल करने में लगेगा तो इससे उसका निष्पादन निश्चित रूप से बढ़ जायेगा। यह साधन सीमित साधन कार्य का उदाहरण होगा। ऑकड़ें सीमित कार्य से तात्पर्य वैसे कार्य से होता है जिसमें निष्पादन व्यक्ति के सीमित स्मृति क्षमता या उद्दीपक के विशेष गुण के कारण सीमित होता है। ऐसे कार्य के निष्पादन पर साधन की उपलब्धता या अनुपलब्धता का कोई असर नहीं पड़ता है। ऐसे कार्य मे पर्याप्त साधन होने के बावजूद भी व्यक्ति का निष्पादन खराब हो सकता है। जैसे यदि कोई व्यक्ति पूर्ण प्रबलता में रेडियो सुनता है और उसी समय कलम खुलकर जमीन पर गिर पड़ता है तो ऐसी परिस्थिति में कलम गिरने से उत्पन्न ध्वनि पर वह ध्यान नहीं दे पायेगा। कलम गिरने से उत्पन्न आवाज पर उत्पन्न ध्यान देने के कार्य पर अधिक ध्यान देने से भी उसके निष्पादन में कोई सुधार नही होगा क्योंकि यहाँ निष्पादन, कार्य के विकृष्ट गुण द्वारा सीमित है यह ऑकड़े-सीमित कार्य का उदाहरण होगा।

नॉरमैन एंव बॉवरो के अनुसार सूचनाओं को संसाधित करने के लिए जो साधन उपलब्ध होते है उनकी एक ऊपरी सीमा निश्चित होती है। जब व्यक्ति को कोई ऐसा कार्य करना होता है जिसे संसाधित करने में लगा कुल साधन की मात्रा की सीमा उस ऊपरी सीमा से कम है तो व्यक्ति उन पर आसानी से ध्यान देने में समर्थ हो पाता है। परन्तु यदि कुल साधन की मात्रा की सीमा उस ऊपरी सीमा से अधिक है तो ऐसी हालत में व्यक्ति को किये जा रहे कार्य पर चयनित ध्यान देने में बाधा पहुँचता है। फलस्वरूप ऐसी परिस्थिति में एक या कई अन्य कार्य का निष्पादन खराब होगा।

नॉरमैन एवं बॉवरो ने अपने इस सिद्धांत में चयनात्मक अवधान के कारण किसी कार्य के निष्पादन पर अभ्यास के संभावित प्रभाव का भी अध्ययन किया है। इन लोगों का मत है कि ऑकड़े सीमित कार्य पर अभ्यास को कोई असर या प्रभाव नहीं पड़ता है। इन दोनों कार्यों पर अभ्यास के इन विभेदी प्रभाव को एक उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझाया जा सकता है जैसे कितना भी अभ्यास तीव्र आवाज के मध्य जमीन पर कलम गिरने की आवाज़ पर कोई व्यक्ति चाहे ध्यान देने के लिए क्यों न कर ले उसके निष्पादन में कोई उन्नति नहीं होगी। क्योंकि यह ऑकडे सीमित कार्य का उदाहरण होगा। परन्तु यदि मान लिया जाए कि कोई छात्र किसी लेख को पढ़ने का कार्य तथा कुछ शब्द लिखने का कार्य साथ साथ करने का कार्य साथ साथ करने का अभ्यास करता है तो इस अभ्यास से उसके निष्पादन में वृद्धि होगी। अभ्यास से सम्भव है कि ये दोनों कार्य व्यक्ति को स्वतः हुए दिख पडे। परिणामतः दोनो कार्य सही सही एवं निष्पक्ष रूप से व्यक्ति कर पाने में समर्थ हो पायेगा।

नाईसर मॉडल
(Neisser Model)

मार्ग विरोध सिद्धांत तथा नॉरमैन तथा बॉवरो द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत के इस विचार से नाईसर बिल्कुल असहमत है कि व्यक्ति में सूचनाओं को संसाधित करने की एक सीमित क्षमता होती है। नाईसर स्वयं ही कहते हैं. 'कोई गणितीय या दैहिक ढंग से स्थापित सीमा नहीं होती है कि हम लोग एक समय में कितनी सूचना पर ध्यान दे सकते हैं।" नाईसर ने अपने सिद्धांत में इस बात पर बल डाला है कि सूचनाओं की सीमित मात्रा पर ही व्यक्ति एक समय में ध्यान दे पाता है। यदि बहुत सारी सूचनाये व्यक्ति को एक साथ दी जाती है तो उसमें से कुछ ही सूचना पर व्यक्ति ध्यान दे पाता है। इस तरह के सिद्धांत से प्रोत्साहित होकर कुछ न्यूरोशरीरशास्त्री ने तन्त्रिका तन्त्र में व्याप्त फिल्टरिंग प्रक्रम की खोज के लिए शोध प्रारम्भ कर दिया है। इन शोधों से स्पष्ट हुआ है कि मस्तिष्क में अरबों न्यूरोन्स होते हैं यही कारण है कि दीर्घ कालीन स्मृति का आकार तथा चन्द सेकेण्ड पहले की घटनाओं को एवं सूचनाओं को याद रखने की क्षमता आदि असीमित होती है। उसी तरह से किसी एक समय में व्यक्ति सूचना की कितनी मात्रा पर ध्यान दे पायेगा, यह सीमित नहीं होती है।

नाईसर ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि दिन प्रतिदिन की जिन्दगी में यदि एक ही साथ व्यक्ति कई चीजों या कार्यों को करना प्रारम्भ करता है तो उसका निष्पादन अवश्य प्रभावित होता है। परन्तु अभ्यास में धीरे धीरे उसके निष्पादन में सुधार हो जाता है और व्यक्ति एक साथ कई उद्दीपकों पर ध्यान देने में समर्थ हो जाता है। इस तथ्य का समर्थन हमें कई प्रयोगात्मक अध्ययनों से हुआ है। स्पेलकी, हिर्स्ट तथा नाईसर (1976) ने इस सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया जिसमें कॉलेज के छात्रों को मन ही मन कहानी पढ़ते समय प्रयोगकर्ता द्वारा बोले जाने वाले असंगत शब्दों के लिखते जाने का भी प्रशिक्षण दिया गया। इस तरह से इन छात्रों को एक ही समय में दो जटिल कार्य करने का प्रशिक्षण दिया गया। कुछ दिनों तक इस तरह के अभ्यास के बाद देखा गया कि ऐसे छात्र इन दोनों तरह के कार्यों को ठीक ढंग से करने में सफल रहे हालांकि प्रारम्भ में इनका निष्पादन उत्तम नहीं था। इन्होने अपने अध्ययन में स्पष्ट रूप से पाया कि अभ्यास से एक महिला टंकण उच्च गति से टाइप करने के साथ ही साथ बोले जा रहे गद्यांश के अशों को भी सही सही बोल भी लेती थी।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मनोविज्ञान की परिभाषा दीजिये। इसके लक्ष्य बताइये।
  2. प्रश्न- मनोविज्ञान के उपागमों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- व्यवहार के मनोगतिकी उपागम को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- व्यवहारवादी उपागम क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- संज्ञानात्मक परिप्रेक्ष्य से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- मानवतावादी उपागम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- मनोविज्ञान की उपयोगिता बताइये।
  8. प्रश्न- भगवद्गीता में मनोविज्ञान को किस प्रकार समाहित किया है? उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- सांख्य दर्शन में मनोविज्ञान को किस प्रकार व्याख्यित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  10. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में मनोविज्ञान किस प्रकार परिभाषित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  11. प्रश्न- मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या तात्पर्य है? सामाजिक परिवेश में इस विधि की क्या उपयोगिता है?
  12. प्रश्न- मनोविज्ञान की निरीक्षण विधि का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
  13. प्रश्न- मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए इसकी विधियों पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? सह-सम्बन्ध के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की गणना विधियों का वर्णन कीजिए। कोटि अंतर विधि का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की दिशाएँ बताइये।
  17. प्रश्न- सह-सम्बन्ध गुणांक के निर्धारक बताइये तथा इसका महत्व बताइये।
  18. प्रश्न- जब {D2 = 36 है तथा N = 10 है तो स्पीयरमैन कोटि अंतर विधि से सह-सम्बन्ध निकालिये।
  19. प्रश्न- सह सम्बन्ध गुणांक का अर्थ क्या है?
  20. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के किन्ही दो सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए
  22. प्रश्न- दीर्घीकृत ध्यान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके निर्धारक की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के स्वरूप को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  24. प्रश्न- चयनात्मक अवधान तथा दीर्घीकृत अवधान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  26. प्रश्न- क्लासिकी अनुबन्धन सिद्धान्त का विवेचन कीजिए तथा प्राचीन अनुबन्धन के प्रकार बताइये।
  27. प्रश्न- क्लासिकल अनुबंधन तथा क्लासिकल अनुबंधन को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए।
  28. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन का अर्थ और उसकी आधारभूत प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अधिगम अन्तरण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार बताइये।
  30. प्रश्न- शाब्दिक सीखना से आप क्या समझते हैं? शाब्दिक सीखने के अध्ययन में उपयुक्त सामग्रियाँ बताइए।
  31. प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिये।
  32. प्रश्न- शाब्दिक सीखना में स्तरीय विश्लेषण किस प्रकार किया जाता है?
  33. प्रश्न- शाब्दिक सीखना की संगठनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का महत्त्व बताइये।
  35. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन में संज्ञानात्मक कारकों की भूमिका बताइये।
  36. प्रश्न- अधिगम के नियमों का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- परिवर्जन सीखना पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- सीखने को प्रभावित करने वाले कारक।
  39. प्रश्न- स्मृति की परिभाषा दीजिये। स्मृति में सुधार कैसे किया जाता है?
  40. प्रश्न- स्मृति के प्रकारों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  41. प्रश्न- स्मृति में संरचनात्मक एवं पुनर्सरचनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- विस्मरण के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रासंगिक तथा अर्थगत स्मृति से क्या आशय है? इनमें विभेद कीजिये।
  44. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति को संक्षेप में बताते हुये दोनों में विभेद कीजिये।
  45. प्रश्न- 'व्यतिकरण धारण को प्रभावित करता है।' इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- स्मृति के स्वरूप पर प्रकाश डालिए। स्मृति को मापने की विधियों का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- विस्मरण के निर्धारक और कारणों का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- संकेत आधारित विस्मरण किसे कहते हैं? विस्मरण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- स्मरण के प्रकार बताइयें।
  50. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति में अन्तर बताइये।
  51. प्रश्न- स्मृति सहायक प्रविधियाँ क्या हैं?
  52. प्रश्न- विस्मरण के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- पुनः प्राप्ति संकेतों के अभाव में किस प्रकार विस्मरण होता है?
  54. प्रश्न- स्मृति लोप क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- विस्मरण के अवशेष-प्रसक्ति समाकलन सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये।
  56. प्रश्न- ध्यान के कौन-कौन से निर्धारक होते है?
  57. प्रश्न- दीर्घकालीन स्मृति तथा उसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- ध्यान की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  59. प्रश्न- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  60. प्रश्न- बुद्धि के संज्ञानपरक उपागम से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों तथा महत्व का वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- गिलफोर्ड के त्रिआयामी बुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  63. प्रश्न- 'बुद्धि आनुवांशिकता से प्रभावित होती है या वातावरण से। स्पष्ट कीजिये।
  64. प्रश्न- बुद्धि को परिभाषित कीजिये। इसके विभिन्न प्रकारों तथा बुद्धिलब्धि के प्रत्यय का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार बताइये।
  66. प्रश्न- वंशानुक्रम तथा वातावरण बुद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?
  67. प्रश्न- संस्कृति परीक्षण को किस प्रकार प्रभावित करती है?
  68. प्रश्न- परीक्षण प्राप्तांकों की व्याख्या से क्या आशय है?
  69. प्रश्न- उदाहरण सहित बुद्धि-लब्धि के प्रत्यन को स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- बुद्धि परीक्षणों के उपयोग बताइये।
  71. प्रश्न- बुद्धि लब्धि तथा विचलन बुद्धि लब्धि के अन्तर को उदाहरण सहित समझाइए।
  72. प्रश्न- बुद्धि लब्धि व बुद्धि के निर्धारक तत्व बताइये।
  73. प्रश्न- गार्डनर के बहुबुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- थर्स्टन के समूह कारक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त के आधार पर बुद्धि की व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  77. प्रश्न- व्यक्तित्व से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयुक्त परिभाषा देते हुए इसके अर्थ को स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- व्यक्तित्व कितने प्रकार के होते हैं? विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण किस प्रकार किया है?
  79. प्रश्न- व्यक्तित्व के विभिन्न उपागमों या सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  80. प्रश्न- व्यक्तित्व पर ऑलपोर्ट के योगदान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- कैटेल द्वारा बताए गए व्यक्तित्व के शीलगुणों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  82. प्रश्न- व्यक्ति के विकास की व्याख्या फ्रायड ने किस प्रकार दी है? संक्षेप में बताइए।
  83. प्रश्न- फ्रायड ने व्यक्तित्व की गतिकी की व्याख्या किस आधार पर की है?
  84. प्रश्न- व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- व्यक्तित्व के मानवतावादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- कार्ल रोजर्स ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की व्याख्या किस प्रकार की है? वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- व्यक्तित्व के शीलगुणों का वर्णन कीजिये।
  88. प्रश्न- प्रजातान्त्रिक व्यक्तित्व एवं निरंकुश व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिये।
  89. प्रश्न- शीलगुण सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  90. प्रश्न- शीलगुण उपागम में 'बिग फाइव' (OCEAN) संप्रत्यय की संक्षिप्त व्याख्या दीजिए।
  91. प्रश्न- प्रेरणा से आप क्या समझते हैं? आवश्यकता, प्रेरक एवं प्रलोभन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- विभिन्न शारीरिक एवं सामाजिक मनोजनित प्रेरकों का वर्णन कीजिए।
  93. प्रश्न- प्रेरणाओं के संघर्ष से आप क्या समझते हैं? इसके समाधान करने के तरीकों पर प्रकाश डालिये।
  94. प्रश्न- आवश्यकता-अनुक्रमिकता से क्या तात्पर्य है? मैसलो के अभिप्रेरणा सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  95. प्रश्न- उपलब्धि प्रेरक एक प्रमुख सामाजिक प्रेरक है। स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- “बाह्य अभिप्रेरण देने से आन्तरिक अभिप्रेरण में कमी आती है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  97. प्रश्न- जैविक अभिप्रेरकों के दैहिक आधार का वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- आन्तरिक प्रेरणा क्या है और यह किस प्रकार कार्य करती है?
  99. प्रश्न- दाव एवं खिंचाव तंत्र अभिप्रेरित व्यवहार में किस प्रकार कार्य करता है?
  100. प्रश्न- जैविक और सामाजिक प्रेरक।
  101. प्रश्न- जैविक तथा सामाजिक अभिप्रेरकों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  102. प्रश्न- आन्तरिक एवं बाह्य अभिप्रेरण क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- प्रेरणा चक्र पर टिप्पणी लिखो।
  104. प्रश्न- अभिप्रेरणात्मक व्यवहार के मापदण्ड बताइये।
  105. प्रश्न- पशु प्रणोद की माप का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- संवेग से आप क्या वर्णन कीजिये। समझते हैं? इसकी विशेषतायें तथा इसके विकास की प्रक्रिया का
  107. प्रश्न- सांवेगिक अवस्था में क्या शारीरिक परिवर्तन होते हैं?
  108. प्रश्न- संवेग के जेम्स लांजे सिद्धान्त तथा कैनन बार्ड सिद्धान्त का तुलनात्मक विवरण दीजिये।
  109. प्रश्न- संवेग शैस्टर-सिंगर सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये।
  110. प्रश्न- संवेग में सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
  111. प्रश्न- संवेगों पर किस प्रकार नियंत्रण कर सकते हैं? स्पष्ट कीजिये।
  112. प्रश्न- 'पॉलीग्राफिक विधि झूठ को मापने की उत्तम विधि है। स्पष्ट कीजिये।
  113. प्रश्न- संवेग के
  114. प्रश्न- संवेग के कैननबार्ड सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा उनकी मानसिक योग्यता सामान्य छात्रों से कम होती है।
  115. प्रश्न- सार्वभौमिक एवं विशिष्ट संस्कृति संवेग की अभिवृत्ति के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  116. प्रश्न- गैल्वेनिक त्वक् अनुक्रिया का अर्थ बताइए।
  117. प्रश्न- संवेग के आयामों को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले बाह्य शारीरिक परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  120. प्रश्न- झूठ संसूचना से क्या आशय है?
  121. प्रश्न- संवेग तथा भाव में अन्तर बताइये।
  122. प्रश्न- संवेग के मापन की कोई दो विधियाँ बताइये।

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